अध्याय 2 संघर्षकालीन भारत
1. मारवाड़ का शासक राव चन्द्रसेन
Ø राव चंद्रसेन का जन्म 16 जुलाई 1541ई.
हुआ यह मालदेव झाला रानी स्वरूप दे का पुत्र था
Ø स्वरूप दे ने मालदेव से कहकर अपने
पुत्र राव चन्द्रसेन को युवराज बनवाया था
Ø चंद्रसेन अपने भाईयों से छोटा होते
हुए भी मारवाड़ का शासक बना
Ø मालदेव के चार पुत्र थे
1. राम
2. उदयसिंह
3. चंद्रसेन
4. रायमल
Ø राम सबसे बड़ा पुत्र था
Ø चंद्रसेन सबसे छोटा पुत्र था
Ø परम्परा के अनुसार बड़ा पुत्र राजा
बनता है परन्तु राव मालदेव ने अपने छोटे पुत्र राव चंद्रसेन को राजा बना दिया। इससे बड़ा पुत्र राम नाराज होकर
सहायता के लिए अकबर की शरण में चला गया ।
Ø अकबर ने सहायता करने के लिए हुसैन
कुली खां के नेतृत्व में सेना भेजी जिसने मई 1564 में जोधपुर किले पर अधिकार कर
लिया ।
Ø मारवाड़ के राजा राव चंद्रसेन वहाँ
भागकर भाद्राजूण में जाकर शरण ली।
Ø 1570 में अकबर ने नागौर दरबार लगाया । राव चंद्रसेन उस दरबार गया था
परन्तु वहाँ पर अकबर के व्यवहार एवं
प्रतिस्पर्धी उदयसिंह को देखकर नागौर दरबार छोड़ के चला आ गया।
Ø अकबर ने बीकानेर के रायसिंह को
जोधपुर का अधिकारी नियुक्त कर दिया और राव चंद्रसेन को पकड़ने के लिए भाद्राजूण में
जलाल खां नेतृत्व 1574 में आक्रमण कर दिया । वहाँ से निकल कर राव चंद्रसेन सिवाणा (बाड़मेर ) पहुँचा।
Ø 11 जनवरी 1581 सारण की पहाड़ियाँ
(पाली) में देहांत हो गया वही पर राव चंद्रसेन की समाधी बनी है।
Ø राव चंद्रसेन के उपनाम
·
मारवाड़ का प्रताप :- जिस
प्रकार मेवाड़ में महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता(गुलामी) स्वीकार नहीं की उसी प्रकार
राव चंद्रसेन ने भी अकबर की अधीनता
स्वीकार नहीं की थी इस कारण उसे मारवाड़ का प्रताप कहते है।
·
प्रताप का अग्रगामी :-
महाराणा प्रताप व राव चंद्रसेन का शासक काल एक ही समय था वह दोनों का एक ही लक्ष्य
था की अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं करना ।
·
भुला- बिसरा राजा
2. बीकानेर का शासक रायसिंह
Ø पिता का नाम –
कल्याणमल राठौर
Ø रायसिंह का जन्म 20
जुलाई 1541 ई. में हुआ था।
Ø 1570 में अकबर ने नागौर दरबार
लगाया जिसमे रायसिंह अकबर की शाही सेना मे शामिल हो गया और अकबर का विश्वासपात्र
बन गया ।
Ø अकबर ने रायसिंह को 1572 ई. में
जोधपुर का अधिकारी नियुक्त किया ।
Ø 25 सितम्बर 1574 ई. को कल्याणमल
की मृत्यु होने के बाद रायसिंह बीकानेर का शासक बना।
Ø सिरोही के देवड़ा सुरताण
व बीजा देवड़ा के मध्य अनबन हो गई तब रायसिंह ने सिरोही पर आक्रमण कर दिया और बीजा को राज्य से बाहर
निकाल दिया और आधा सिरोही मुगलों के अधीन कर महाराणा प्रताप के सौतले भाई जगमाल को
दे दिया ।
Ø सुरताण ने मुगलों पर आक्रमण कर
दिया वह 1583 ई. को “ दताणी नामक स्थान पर युद्ध हुआ जिसमे जगमाल की मृत्यु हो गई। सुरताण ने वापस सिरोही पर
अधिकार कर लिया ।
Ø अकबर ने रायसिंह से
प्रसन्न होकर 1593 ई. में उसे जूनागढ़ प्रदेश दिया और 1604 ई. में शमशाबाद तथा
नूरपुर की जागीर व “ राय” की उपाधि दी।
Ø रायसिंह द्वारा
बीकानेर में कार्य
·
1589 – 94 ई. के मध्य अपने प्रधानमंत्री करमचंद
की देखरेख में जूनागढ़( बीकानेर) किले का निर्माण करवाया । तथा वहाँ पर एक
प्रशस्ति लगवाई जिसे “रायसिंह प्रशस्ति “ के नाम से जाना जाता है।
·
रायसिंह साहित्यकार भी थाउसने रायसिंह महोत्सव, वैद्यक
वंशावली, ज्योतिश रत्नमाला , ज्योतिश ग्रंथो की भाषा पर बाल बोधनी टिका लिखी।
·
कर्मचन्द्रवंशोत्किर्तनकं काव्य ग्रन्थ में रायसिंह
को “राजेन्द्र” पुकारा गया है।
·
रायसिंह के काल में बीकानेर में अकाल पड़ा रायसिंह ने
जगह- जगह “ सदाव्रत “ खोले एवं पशुओ के लिए चारे पानी की व्यवस्था की।
·
बीकानेर चित्रकला की शुरुआत रायसिंह के काल में शुरू
होई।
·
रायसिंह की मृत्यु दक्षिण भारत के एक स्थान बुरहानपुर
में 21 जनवरी 1612 ई. में हुई।
·
महाराजा रायसिंह को इतिहासकार मुंशी देवीप्रसाद
ने “ राजपूताने का कर्ण “ कहा।
3. जयपुर का शासक सवाई जयसिंह 2
Ø जयसिंह का
जन्म 3 सितम्बर 1688 ई. को हुआ।
Ø जयसिंह
द्वितीय के पिता का नाम बिशनसिंह था।
Ø इनके बचपन का नाम
विजयसिंह था व इनके छोटे भाई का नाम जयसिंह था परन्तु औरंगजेब ने इनकी योग्यता से
प्रसन्न होकर इनका नाम जयसिंह व इनके भाई का विजयसिंह कर दिया।
Ø 1699 ई. में इनके पिता
बिशनसिंह की मृत्यु हो गई। सवाई जयसिंह 19 सितम्बर 1699 को आमेर का शासक बना था।
Ø फरवरी 1707 ई. में
औरंगजेब की मृत्यु हो गई । औरंगजेब के चार पुत्र थे मुअज्जम , आजम, कामबख्त, अकबर
था
Ø औरंगजेब के दो पुत्र कामबख्त,
अकबर को राजा बनने की कोई इच्छा नहीं थी। अत: मुअज्जम और आजम दोनों के बीच 1707 ई. “ जाजऊ के मैदान
“(उतरप्रदेश) में युद्ध हुआ ।
Ø सवाई जयसिंह ने इस युद्ध
में भाग लेते हुए आजम का साथ दिया। मुअज्जम ने जयसिंह के भाई विजयसिंह को अपनी ओंर
मिला लिया । इस यद्ध में मुअज्जम की जीत होई व उसने अपना नाम बहादुर शाह प्रथम रखा
।
Ø विजयसिंह आमेर
का शासक बनाया गया व आमेर का नाम “ इस्लामाबाद “ और बाद में “मोमिनाबाद “ रखा ।
Ø आमेर का शासक जयसिंह व
मारवाड़ के शासक अजीतसिंह को बहादुरशाह ने सूबेदार नियुक्त किया।
Ø देबारी
समझौता :- अमरसिंह द्वितीय (2) व सवाई जयसिंह के बीच समझौता
जिसमे अमरसिंह ने शर्त के साथ अपनी पुत्री चंद्र्कुंवारी का विवाह सवाई जयसिंह के
साथ किया शर्त यह थी की चंद्र्कुंवारी का पुत्र ही आमेर का आगामी शासक बनेगा।
जयसिंह ने यह शर्त मान ली। इसे देबारी समझौता कहते है।
Ø भरतपुर रियासत में
चूडामन ने विद्रोह कर दिया। रंगीला ( मुग़ल सम्राट) ने उसे दबाने के लिए 1722ई. को
जयसिंह को भेजा। जयसिंह ने चुडामन के भतीजे बदनसिंह को अपनी तरह मिला कर चूड़ामन को भरतपुर से खदेड़
दिया ।
Ø जयसिंह ने
बदनसिंह को “ ब्रजराज “ की उपाधि दी।
Ø सवाई
जयसिंह ने 1727 ई. को जयनगर ( जयपुर ) की स्थापना की इसके वास्तुविद पं. विद्याधर
भट्टाचार्य एवं पं. जगन्नाथ सम्राट थे।
Ø सवाई जयसिंह
ने नक्षत्रों की शुद्ध सरणी ‘ जीज मुहम्मद शाह ने बनाई तथा “जयसिंह कारिका’
ज्योतिष ग्रन्थ की रचना की।
Ø सवाई जयसिंह ने
जयपुर , दिल्ली , उज्जैन, बनारस व मथुरा में पांच वेधशालाओ ( जंतर-मंतर) का
निर्माण करवाया था।
Ø जयपुर में
स्थित जंतर मंतर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा 2010 में दिया गया है।
Ø जयसिंह ने आमेर की जगह
जयपुर को कछवाहा वंश की राजधानी बनाया ।
Ø सवाई जयसिंह अंतिम शासक
था जिसने कई यज्ञ करवाये।
Ø यज्ञ करने वाले बाह्मणों
के रहने के लिए जयपुर में जलमहलों का निर्माण करवाया ।
Ø सवाई जयसिंह की मृत्यु
21 सितम्बर 1743 ई. रक्त विकार से हो गई थी।
0 टिप्पणियाँ