सर्वोच्च न्यायालय (उच्चतम
न्यायालय)
Ø अनुच्छेद 124 में उच्चतम न्यायालय की
स्थापना और गठन
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भारत
में एक सर्वोच्च न्यायालय है जो राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में स्थित है।
·
भारत
में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 28 जनवरी 1950 को किया गया ।
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मूल रूप
में सर्वोच्च न्यायालय के लिए एक मुख्य न्यायाधीश व सात अन्य न्यायाधीश की
व्यवस्था की गई थी ।
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वर्तमान
में एक मुख्य न्यायाधीश व 33 अन्य न्यायाधीश है।
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संसद के
पास सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की
संख्या , क्षेत्राधिकार , वेतन , सेवा शर्ते निश्चित करने का अधिकार है।
Ø अनुच्छेद 124(2) न्यायाधीशों की
नियुक्ति
·
सर्वोच्च
न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा कॅालेजियम पद्धति के आधार पर की जाती है
·
राष्ट्रपति
सर्वोच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीश से परामर्श करने के बाद जिनसे वह परामर्श करना
उचित समझे , भारत के मुख्य न्यायाधीश की न्युक्ति करेगा ।
Ø कॅालेजियम पद्धति – उच्चतम न्यायालय के कॅालेजियम में मुख्य न्यायाधीश सहित उच्चतम न्यायालय के पांच अन्य
न्यायाधीश होते है । कॅालेजियम पद्धति की व्यवस्था 6 अक्टूबर 1993 को मुख्य न्यायाधीश जे. एस.
वर्मा के नेतृत्व वाली खण्डपीठ जे द्वारा बनायीं गई थी
·
कॅालेजियम
पद्धति के द्वारा मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ एवं तबादलों
का अधिकार है।
Ø अनुच्छेद 124(3) न्यायाधीशों की
योग्यताएँ
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वह भारत
का नागरिक हो।
·
वह किसी
उच्चतम न्यायालय अथवा दो या दो से अधिक उच्च न्यायालयों में लगातार कम से कम 5
वर्ष तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चूका हो
अथवा
·
वह किसी
उच्च न्यायलय या न्यायालयों में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता (वकील) रह चूका हो ।
·
राष्ट्रपति की दृष्टि से कानून का उच्च कोटि का ज्ञाता हो।
Ø अनुच्छेद 124(6) शपथ या
प्रतिज्ञान
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सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति के समक्ष शपथ लेता
है ।
कार्यकाल :-
·
सर्वोच्च न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक
पद पर आसीन रह सकता है ।
·
इससे पूर्व वह राष्ट्रपति को त्याग पत्र दे सकता है ।
Ø अनुच्छेद 124(4) न्यायाधीश को
हटाना ( महाभियोग)
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सिद्ध कदाचार , अथवा असमर्थता के आधार पर संसद के द्वारा
न्यायाधीश को उसके पद से हटाया जा सकता है।
1. न्यायाधीश जॉंच अधिनियम 1968 उच्चतम
न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के सम्बन्ध में महाभियोग की प्रक्रिया का उपबंध
करता है।
2. निष्कासन प्रस्ताव 100 सदस्यों (लोकसभा
के) या 50 सदस्य( राज्यसभा के ) द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद अध्यक्ष /सभापति को
दिया जाता है।
3. अध्यक्ष / सभापति इस प्रस्ताव को शामिल कर
सकते है या फिर अस्वीकार कर सकते है।
4. यदि इसे स्वीकार किया जाता है तो अध्यक्ष
/ सभापति को इसकी जॉंच के लिए तीन सदस्य समिति गठित करनी होगी।
5. संसद विशेष बहुमत (सदन की कुल सदस्यता का
बहुमत तथा सदन में उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों का 2/3 ) से दोनों सदनों में
प्रस्ताव पारित कर इसे राष्ट्रपति को भेजा जाता है।
6. अंत में राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का
आदेश जारी कर सकता है।
Ø अब तक किसी भी न्यायाधीश पर
महाभियोग नहीं लाया गया।
Ø
अनुच्छेद 126 के अनुसार राष्ट्रपति किसी
न्यायाधीश को भारत के उच्चतम न्यायालय का कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर
सकता है जब-
1.
मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो
2.
अस्थायी रूप से मुख्य न्यायाधीश
अनुपस्थित हो
3.
मुख्य न्यायाधीश अपने दायित्वों के
निर्वहन में असमर्थ हो
Ø सर्वोच्च न्यायलय की शक्तियाँ व
क्षेत्राधिकार
Ø अनुच्छेद 131 में प्रारम्भिक
क्षेत्राधिकार- इसका आशय उन विवादों से है , जिनकी सुनवाई केवल भारत का उच्चतम
न्यायालय द्वारा ही की जा सकती है।
1. भारत सरकार तथा एक या एक से अधिक राज्यों
के बीच विवाद
2. भारत सरकार , संघ का कोई राज्य या राज्यों
तथा एक से अधिक राज्यों में उत्पन्न कोई विवाद
3. अनुच्छेद 32 के तहत मौलिक अधिकार का
उल्लंघन से सम्बंधित जो विवाद है वह चाहे तो पहले किसी राज्य के उच्च न्यायालय में
और चाहे तो सीधे सर्वोच्च न्यायालय में उपस्थित किया ज सकता है।
Ø अनुच्छेद 132 में अपीलीय
क्षेत्राधिकार
·
इसके तहत अपीलीय न्यायक्षेत्र को चार वर्गों में वर्गीकरण
किया जा सकता है
1. संवैधानिक मामलों में अपील
2. दीवानी मामलों मव अपील
3. आपराधिक मामलों में अपील
4. विशेष अनुमति द्वारा अपील
1. संवैधानिक मामले :- भारत के किसी भी राज्य के उच्च न्यायालय
के निर्णय , डिक्रिया, आदेश के विरुद्ध यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे की
मामला संवैधानिक व्याख्या का प्रश्न शामिल है तो उसकी अपील उच्चतम न्यायालय में की
जा सकती है।
2. दीवानी मामले:- इसमे सम्बन्ध रखने वाले किसी भी मामले को
उच्चतम न्यायालय में लाया जा सकता है यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर कि मामला
सामान्य महत्व का है , और निर्णय उच्च न्यायालय
द्वारा किया जाना अपेक्षित है ( अनुच्छेद133 )
3. आपराधिक मामले (फौजदारी) (अनुच्छेद
134) : - उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालय के आपराधिक मामलों के फैसलों के खिलाफ
सुनवाई करता है-
1. आरोपी व्यक्ति के दोषमोचन के आदेश को पलट
दिया हो और उसे सजा – ए – मौत दी हो
2. किसी अधीनस्थ न्यायालय से मामला लेकर
आरोपी व्यक्ति को दोषसिद्ध किया हो और उसे सजा ए मौत दी हो
3. यह प्रमाणित किया हो की सम्बंधित मामला
उच्चतम न्यायालय में ले जाने योग्य है
Ø वर्ष 1970 में संसद ने उच्चतम
न्यायालय के आपराधिक अपीलीय में विस्तार किया है
·
किसी अपील में आरोपी व्यक्ति को दोषमुक्त किया हो और उसे
उम्र कैद की या दस साल की सजा सुनवाई गई हो
·
स्वयं किसी मामलें को किसी अधीनस्थ न्यायालय से लिया हो और
आरोपी व्यक्ति को उम्र कैद या दस वर्ष की सजा सुनवाई गई हो
4. विशेष अनुमति द्वारा अपील :- अनुच्छेद 136 के तहत उच्चतम न्यायालय अपने
स्वविवेक से भारत के राज्यक्षेत्र में स्थित किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण
द्वारा किसी भी महत्व के विषय पर दिए गए निर्णय , आदेश, डिक्री या दण्डादेश, के
विरुद्ध विशेष अपील की अनुमति दे सकता है
Ø परामर्श सम्बन्धी क्षेत्राधिकार
:- अनुच्छेद 143
1. अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति विधि ता
तथ्य के व्यापक महत्व के प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से या
उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठ न्यायाधीश से सलाह (परामर्श) ले सकता है।
2. इस सलाह को स्वीकार या अस्वीकार करना
राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर है ।अत राष्ट्रपति इसको मानने के लिए बाध्य नहीं है।
Ø अभिलेख न्यायालय :- अनुच्छेद
129 के तहत उच्चतम न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय है। अभिलेख न्यायालय के रूप में दो
शक्तियाँ प्राप्त है-
1. उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही एवं उसके
फैसले की कार्यवाही एवं उसके फैसले सार्वकालिक अभिलेख व साक्ष्य (सबूत) के रूप में रखे जाएगें । इन अभिलेखों पर
किसी अन्य अदालत मे चल रहे मामले के दौरान प्रश्न नहीं उठाया जा सकता ।
2. इसके पास न्यायालय की अवमानना पर दण्डित
करने का अधिकार है।
3. अवमानना का अर्थ :- न्यायालय को बदनाम
करना , न्यायिक प्रक्रिया में बाधा पहुँचाना , न्याय प्रशासन को किसी प्रकार से
रोकना शामिल है।
4. सजा :- 6 वर्ष के लिए सामान्य जेल या 2000
रु तक अर्थदण्ड या दोनों शामिल है।
Ø अनुच्छेद 32 :- उच्चतम न्यायालय मौलिक अधिकारों के
संरक्षक एवं रक्षक के रूप स्थापित किया है। यह बंदी प्रत्याक्षिकरण, परमादेश ,
उत्प्रेषण , प्रतिषेध एवं अधिकार पृच्छा आदि न्यायिक आदेश शामिल है।
Ø न्यायिक पुनर्वीलोकन :- अनुच्छेद 137 में भारत में उच्चतम
न्यायालय को न्यायिक पुनर्वीलोकन की शक्ति दी गई है जो की अमेरिका के संविधान से
लिया गया है ।
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इसके अनुसार यह न्यायालय केंद्र व राज्य के विधायी व कार्यकारी आदेशों
का परिक्षण करता है । अगर कोई भी संवैधानिक त्रुटी दिखती हो तो उसे अवैध घोषित कर
सकता है
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उदहारण:- केशवानंद भारती मामला (1973)
1. प्रथम सर्वोच्च न्यायालय का
मुख्य न्यायाधीश : - हीरा लाल जे. कानिया
2. वर्तमान : - शरद अरविन्द बोबड़े
3. एम. हिदायतुल्ला एकमात्र
न्यायाधीश है जो कार्यवाहक राष्ट्रपति रह चुके है।

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