अध्याय 3 अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार एवं संघर्ष
महत्वपूर्ण टिप्पणीयां
1. सन्यासी विद्रोह :-
Ø बंगाल पर अंग्रेजी राज्य स्थापित होने के बाद जब 1769 -70 ई. भीषण अकाल पड़ा। कंपनी ने आदेश से कर (TAX) भी कठोरता के वसूल करने लगे।
Ø सन्यासी कृषि के साथ साथ धार्मिक यात्राएँ भी नियमित करते थे।
Ø अंग्रेजो ने तीर्थ स्थानों पर प्रतिबन्ध लगा दिया जिसे सन्यासी लोग नाराज हो गये ।
Ø इन सन्यासियों ने अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ने के लिए जनता के साथ मिलकर कंपनी की कोठियों तथा कोषों पर आक्रमण कर लुट लिए।
Ø ये लोग कंपनी के सैनिको के साथ लम्बे समय तक वीरतापूर्ण से लड़ाई की परन्तु वारेन हेस्टिंग ने एक लम्बे अभियान के तहत इस विद्रोह को दबा दिया जिसका उल्लेख बंकिम चंद्र चटर्जी ने अपने उपन्यास आनंद मठ में मिलता है।
2. कोल विद्रोह :-
Ø अंग्रेजी प्रशासनिक जटिलताओ कठोर भूमिकर व्यवस्था तथा स्थानीय शासक वर्गों के उपेक्षापूर्ण व्यवहार ने जिस शोषण को जन्म दिया था उसके खिलाफ कोल जनजाति ने विद्रोह किया ।
Ø यह विद्रोह विद्रोह तब अधिक बढ़ गया जब 1831 ई. में उनकी भूमि उनके मुखिया मुण्डो से छीनकर बाहरी लोगों को दे दिया
Ø यह विद्रोह रांची , सिंहभूम, हजारीबाग, पलामाऊ,तथा मानभूमि के पश्चिमी क्षेत्रों में फैला गया ।
Ø एक दीर्घकालीन सैन्य अभियान के पश्चात् यह विद्रोह शांत किया गया।
3. भील विद्रोह :-
Ø भील जनजाति पश्चिमी तट के खानदेश नामक इलाके में रहती थी।
Ø 1812 – 19 ई. तक इन लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। कारण यह था की कृषि संमंधी कष्ट तथा सरकार की नई नीतियों से भय था ।
Ø अंग्रेजी सेना की अनेक टुकड़ियां इसको दबाने में लगी थी उन्होंने 1825 ई. में सेवरम के नेतृत्व में पुन: विद्रोह किया तथा 1831 ई. तथा 1846 ई. में पुन: विद्रोह किया था
4. रमोसी विद्रोह : -
Ø पश्चिमी घाट में रहने वाली एक जनजाति रमोसी थी । वे अंग्रेजों प्रशासन पद्धति तथा अंग्रेजी प्रशासन से अप्रसन्न थे ।
Ø 1822 ई. में उनके सरदार चित्तर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया तथा सतारा के आस – पास के प्रदेश लुट लिए।
Ø 1825 – 26 ई. में पुन: विद्रोह हुआ परन्तु अधिक सैन्य बल के कारण यह विद्रोह समाप्त हो गया ।
राजनैतिक आन्दोलन
1. रोलेट एक्ट :-
Ø भारत सरकार ने 1917 में सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता में एक कमेटी नियुक्त की जिसकी सिफारिश पर 19 मार्च 1919 को रोलेट एक्ट पारित किया गया।
Ø इस एक्ट के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर 2 वर्ष के बंदी बनाया जा सकता था किन्तु इसके विरुद्ध “ न कोई अपील, न कोई दलील और न कोई वकील किया जा सकता था
Ø इस एक्ट को काला कानून कहकर निंदा की गई ।
Ø इस एक्ट के विरोध में 6 अप्रैल 1919 को देश भर हड़तालो का आयोजन होने लगा।
2. खिलाफत आन्दोलन :-
Ø खिलाफत आन्दोलन भारतीय मुसलमानों द्वारा तुर्की के खलीफा के सम्मान में चलाया था।
Ø 19 अक्टूबर 1919 को पुरे देश में खिलाफत दिवस मनाया गया । गाँधीजी भी इस आन्दोलन में शामिल हुए और केसर ए हिन्द की उपाधि को लौटा दिया
Ø इस आन्दोलन की समाप्ति 10 अगस्त 1920 को सेब्र (सेवर्स) की संधि से हुई जिसमे तुर्की का विभाजन कर उसे धर्म निरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर खलीफा के पद को समाप्त कर दिया ।
3. असहयोग आन्दोलन : -
Ø 1 अगस्त 1920 को गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ करने की घोषणा कर दी।
Ø इसके अंतगर्त सरकारी उपाधियों को छोड़ने , विधानसभाओ , न्यायालयों , सरकारी शैक्षणिक संस्थाओ इत्यादि का त्याग करना तथा कर (TEX) नहीं देना।
Ø 1921 ई. में इस आन्दोलन में 30000 व्यक्ति जेल गये। भारतीय इतिहास में यह पहला अवसर था जब स्वराज के लिए इतनी अधिक जनता ने भाग लिया ।
Ø जब यह आन्दोलन शिखर पर था तब 5 फरवरी 1922 ई. को उतरप्रदेश के गोरखपुर जिले में चौरा- चोरा नामक स्थान पर शांतिपूर्ण जुलुस पर पुलिस द्वारा अत्याचार करने पर भीड़ ने पुलिस चौकी को आग लगा दी। जिसमे 21 सिपाही एक थानेदार की मौत हो गई थी।
Ø इस घटना के कारण 12 फरवरी 1922 को गाँधीजी ने इस आन्दोलन को वापस ले लिया ।
4. सविनय अवज्ञा आन्दोलन :-
Ø 30 सितम्बर 1929 ई. को कांग्रेस अधिवेशन में पण्डित जवाहर लाल नेहरु की अध्यक्षता ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास किया ।
Ø 12 मार्च 1930 को गाँधीजी ने अपने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी की ओर कुच किया ।
Ø गाँधीजी 5 अप्रैल 1930 को दांडी पहुँचे और 6 अप्रैल 1930 को समुद्रके पानी से नमक बनाकर सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की।
Ø इस आन्दोलन में गैर क़ानूनी नमक बनाने, महिलाओं द्वारा शराब की दुकानों , विदेशी वस्त्रो को जलाना, विद्यार्थीयो द्वारा सरकारी स्कुल कॉलेज छोड़ना , सरकारी कर्मचारियों को नौकरी से त्याग पत्र देना, और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाना ।
Ø कुछ समय बाद यह आन्दोलन पुरे भारत में फैल गया इस आन्दोलन में महिलाओं ने भी बढ़ चढ़ कर भाग लिया और विदेशी वस्तुओ का बहिष्कार करना था ।
Ø 5 मार्च 1931 को सरकार और कांग्रेस के मध्य गाँधी – इरविन समझौता हुआ । जिसमे घोषणा की गई की भारतीय संवैधानिक विकास का उद्देश्य भारत को डोमिनियन स्टेट्स देना है ।
Ø गाँधीजी ने गोलमेज सम्मलेन में भाग लिया और वहाँ से निराशा मिली जिस कारण 1933 ई. को अपने इस आन्दोलन की असफलता को स्वीकार किया वह कांग्रेस की सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया
5. भारत छोड़ो आन्दोलन :-
Ø 14 जुलाई 1942 जो वर्धा में आयोजित कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में “ भारत छोड़ो प्रस्ताव “पारित किया गया।
Ø 8 अगस्त 1942 को बम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने भारत छोड़ो प्रस्ताव को स्वीकार किया और भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ।
Ø इस आन्दोलन में गाँधीजी ने “करो या मरो” का नारा दिया।
Ø 9 अगस्त 1942 को गाँधीजी सहित अनेक नेताओ को गिरफ्तार कर लिया गया।
Ø इस आन्दोलन में शांतिपूर्ण हड़ताल करना , सार्वजनिक सभाएँ करना , लगान देने से मना करना सरकार असहयोग करने की बात कही गई।
Ø इस आन्दोलन में जयप्रकाश नारायण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। कही नेता भूमिगत रहकर आन्दोलन को चलाया जिसमे जयप्रकाश नारायण , राममनोहर लाल लोहिया अच्युत पटवर्धन , रामानंद मिश्रा , एस.ऍम.जोशी प्रमुख थे।
Ø इस आन्दोलन के कारण लोगों में आजादी का मार्ग प्रशस्त कर दिया। भारतीयों में वीरता ,उत्साह, शौर्य ,और देश के लिए त्याग की भावना जागृत की।
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