बाल मनोविज्ञान


                                 बाल मनोविज्ञान     


Ø  अर्थ :- क्रो और क्रो के अनुसार :- गर्भावस्था से लेकर प्रोढ़ावस्था तक बालकों के विकास का अध्ययन बाल विकास कहलाता है
जेम्स ड्रेवर के अनुसार :- बाल मनोविज्ञान की वह शाखा जिसमे गर्भावस्था से लेकर परिपक्वस्था तक विकासशील मानव का अध्ययन किया जाता है

अभिवृद्धि और विकास

अभिवृद्धि :- गर्भावस्था से लेकर प्रौढ़वस्था तक कोशिकाओं में मात्रात्मक परिवर्तन के कारण शरीर में होने वाले परिवर्तन अभिवृद्धि कहलाते है।
जैसे: - लम्बाई , चौड़ाई , वजन , आकार , आदि में परिवर्तन
सोरेंसन के अनुसार:- अभिवृद्धि वे ब्राहा ( बाहरी) शारीरिक परिवर्तन है जिनका मापन किया जा सकता है।

विकास :- विकास जन्म से लेकर मृत्यु तक चलने वाली वह प्रक्रियां है जिसमें कोशिकाओं गुणात्मक परिवर्तन होता है।
जैसे :- विभिन्न प्रकार की वृद्धियां शारीरिक , मानसिक सामाजिक संवेगात्मक भाषात्मक कलात्मक आदि मिलकर विकास कहलाते है।

गैसेल के अनुसार :- विकास जन्म से लेकर मृत्यु तक चलने वाली एक सतत प्रक्रिया है जिसमे मनुष्य के रूप ,गुण व्यवहार और कुशलताओं में वृद्धि होती है।


अभिवृद्धि व विकास मे अंतर 

क्र.म
अभिवृद्धि
विकास
1.
गर्भावस्था से प्रौढ़वस्था तक
जन्म से मृत्यु तक
2.
कोशिकाओं में मात्रात्मक परिवर्तन
कोशिकाओं में गुणात्मक + मात्रात्मक परिवर्तन
3.
एक सक्रीण अवधारणा
समग्र अवधारणा
4.
एक बाहरी अवधारणा
विकास आन्तरिक अवधारणा
5.
भौतिक
अभौतिक
6.
मापनीय
अमापनीय
7.
शारीरिक परिवर्तन
रूप गुण व्यवहार परिवर्तन
8.
अभिवृद्धि में विकास शामिल है
विकास अभिवृद्धि में शामिल है


अभिवृद्धि एवं विकास के सिद्धांत

नोट :- अभिवृद्धि एवं विकास के सिद्धांत अमरीकी मनोवैज्ञानिक एलिजाबेथ हरलांक तथा स्किनर द्वारा दिए गये है।
भारत में प्रो. कुप्पुस्वामी ने इस सिद्धांतों को प्रचलन किया गया था
1. विकास के पूर्वनुमेय का सिद्धांत / समान प्रतिमान का सिद्धांत 
अर्थ  :- प्रत्येक प्राणी में अभिवृद्धि और विकास उसकी जाती के अनुसार एक निश्चत मांडल अथवा पैटन के अनुसार होता है। और कभी भी इस माँडल का उल्घंन नहीं होता है।

2. सामान्य से विशिष्ट की और का सिद्धांत /ऊपर से नीचे की और का सिद्धांत
अर्थ :- प्रत्येक प्राणी में अभिवृद्धि और विकास की प्राक्रिया सामान्य से विशिष्ट की ओर चलती है।

3. सिर से पांव की और का सिद्धांत
अर्थ :- अभिवृद्धि एवं विकास मष्तिष्क से प्रारम्भ होकर नीचे पैरो की ओर गति करती है। अत: सर्वप्रथम विकास मतिष्क का अत: में विकास पैरो का होता है।
4. समीप से दूर का सिंद्धांत
5. संगठित प्रक्रिया का सिंद्धांत
6. विभिन्नता का सिद्धांत :-
अर्थ :- विकास की प्रक्रिया में दो प्रकार की विभिन्नता पाई जाती है।
 (अ) अवस्था आधारित विभिन्नता
 जैसे :- शैशवावस्था = तीव्र गति से विकास
       बाल्यावस्था = मन्द गति से विकास
       किशोरवस्था = तीव्र गति से विकास
       प्रौढ़ावस्था  = मंद गति से विकास

 (ब) लैंगिग विभिन्नता
 1. शैशवावस्था व बाल्यावस्था में बालिकाओं में विकास की अधिकता होता है
 2. किशोरवस्था  व सम्पूर्ण जीवन में लड़कों का विकास अधिक होता है

7. विकास की संचिता और पुनारावृति का सिद्धांत
  अर्थ :- विकास के अंतर्गत अलग – अलग अवस्थाओं में अलग – अलग गुण उत्पन्न होते है। तथा यह गुण अगली अवस्था में संचित हो जाते है और किसी अन्य अवस्था में पुन: प्रकट हो जाते है।
क्र.म
शैशवावस्था / किशोरावस्था
बाल्यावस्था / प्रौढ़ावस्था
1.
अन्तमुखी प्रवृति
बर्हिमुखी
2.
काल्पनिक
यथार्थवादी
3.
काम प्रवृति
न्यून काम प्रवृति
4.
विषम लिंगी आकषर्ण
सम लैगिंग
5.
आदत व्यवहार
-

8. विकास के पठारों का नियम
अर्थ :- विकास कि प्रक्रिया में विभिन्न प्रकार की बाधाओं के कारण अभिवृद्धि और विकास में विभिन्नता उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण प्राणियों में व्यक्तिगत विभिन्नताएं उत्पन्न होती है।
9. विकास की भविष्यवाणी का सिद्धांत
अर्थ :- किसी भी बालक के प्रारम्भिक व वर्तमान विकास के आधार पर उसके भविष्य के भावी विकास का अनुमान लगाया ज सकता है।
10. विकास के काम प्रवृति का सिद्धांत
अर्थ :- सिगमंड फ्रायड के अनुसार = अलग – अलग अवस्थाओं में काम प्रवृति के कारण विभिन्न गुण उत्पन्न अवस्थाओं में काम प्रवृति के कारण विभिन्न गुण ऊपन्न होते है जो विकास में वृद्धि करते है तथा इसकी निम्न अवस्थाएं है
1. नार्सिक की अवस्था = प्रारम्भिक शैशवावस्था में इस अवस्था में काम वसना का केंद्र बिंदु स्वयं का मुख होता है। अत: शिशुओ में आत्ममुकधता पाया जाता है जिसके कारण आशा , निराशा , संदेह, विश्वास, आत्मनिर्भर आता है।
2. इलेक्ट्रा कांपलेक्स = पितृभाव ग्रन्थि
  आँडिडस कांपलेक्स  = मातृभाव ग्रन्थि
उतर शैशवावस्था  = इस अवस्था में बालकों में विषम लिंगीय आकषर्ण की प्रवृति पाई जाती है जिसके कारण विषम लिंगी समूह का निर्माण और विषम लिंगी अंत क्रिया पाई जाती है।
3. सुपररियटी कांपलेक्स की अवस्था = आत्मगौरव की अवस्था :- इस अवस्था में न्यून कम सूक्त काम प्रवृति होती है जिसके कारण आत्म गौरव की प्रवृति उत्पन्न होती है। किसके कारण बालकों में रुचियों में परिवर्तन / समलिंगी समूह तथा लैगिंग भूमिकाओं का निर्माण आदि उत्पन्न होता है।
4. फेटेसी की अवस्था ( काल्पनिकता की अवस्था) = किशोर अवस्था में कामप्रवृति का केंद्र बिंदु जनन गुपियाँ होती है जिसके कारण स्वप्रेम , सौन्दर्य ,बोध ,तीव्र कामुकता विषम लिंगी आकषर्ण आदि गुण उत्पन्न होते है।
11. वंशानुक्रम एवं वातावरण का सिद्धांत 
  अर्थ :- प्रत्येक मनुष्य में सामान्यत: 80% से अधिक विकास वंशानुक्रम 20 % विकास वातावरण पर निर्भर करता है।
गोडार्ड तथा परिकर वंशानुक्रम को अधिक महत्त्व देते है जबकि वाटसन ने वातावरण को अधिक महत्व दिया।
वंशानुक्रम के नियम
(अ) बिजकोशों के निरन्तरा का नियम = जनक विजमैंन
 प्रयोग  = चूहे पर
प्रत्येक जाती में एक पीढ़ी के सभी प्रकार के शुद्ध अनुवांशिक गुण अगली पीढ़ी में स्थानांरित होते है। परन्तु अर्जित गुणों का स्थानान्तरण नहीं होता है।

(ब) अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम = जनक :- लैमार्क
  प्रयोग :- मेक्डूगल  = चूहों पर    हैरिसन  = कीट पतंगों पर
इस सिद्धांत के अनुसार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अर्जित गुणों का भी स्थानान्तरण होता है।

(स) शुद्ध जाति की अमरता का नियम = जनक मेंडल
  प्रयोग = मटर के दानों पर
मेंडल के अनुसार प्रत्येक जाति के शुद्ध अनुवांशिक गुण कभी नष्ट नहीं होते है तथा एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी स्थानान्तरण होते रहते है लेकिन यदि किसी कारण वश इन गुणों में वर्ण संकरता उत्पन्न हो जाये तो कुछ पीढ़ियों बाद यह वर्ण संकरता समाप्त हो जाएगी और उस जाति के शुद्ध आनुवंशिक गुण पुन: उत्पन्न हो जाएगें

(द) समानता का नियम : जनक  = गोडार्ड
  प्रत्येक पीढ़ी के सभी प्रकार के आनुवांशिक और कृत्रिम गुण दूसरी पीढ़ी में स्थानांरित होते है अत: माता पिता उसकी संतान में गुणों में समानता पायी जाती है।
उदा. बुद्धिमान माता पिता की संतान बुद्धिमान ( गोडार्ड )

(य) प्रत्यागमन का नियम : जनक = सोरेंसन
     सोरेंसन के अनुसार एक पीढ़ी के किसी भी गुण का अगले पीढ़ी स्थानान्तरण नहीं होता है। प्रत्येक संतान अपने माता पिता के विरोधी गुणों को लेकर उत्पन्न होती है।
जैसे:- बुद्धिमान माता –पिता बुद्धिहीन संतान
      बुद्धिहीन माता – पिता की संतान बुद्धिमान संतान 




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