REET CLASS 10 SST NOTES IN HINDI

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अध्याय  : 1   स्वर्णिम भारत

महाजनपद काल

Ø  छठी शताब्दी ई.पू. में उतर भारत में अनेक शक्तिशाली स्वतंत्र  राज्यों की स्थापना हुई। जिन्हें हम महाजनपदों की संज्ञा दी गई है।

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Ø  16 महाजनपदों के जानकारी के स्त्रोत

1. अगुत्तर निकाय       2.  भगवती सूत्र

क्रम.स.

महाजनपद

राजधानी

1.

काशी

वाराणसी

2

कुरु

इन्द्रप्रस्थ

3

अंग

चंपा

4

मगध ( सबसे शक्तिशाली जनपद)

राजगृह/गिरिव्रज

5

वज्जि

विदेह/मिथिला

6

मल्ल

कुशावती

7

चेदि

शक्तिमति

8

वत्स

कौशाम्बी

9

कोशल

अयोध्या

10

पांचाल

अहिच्छत्र(उतर पांचाल) दक्षिण (कांपिल्य)

11

मत्स्य

विराटनगर

12

शूरसेन

माथुरा

13

अश्सक

पोतन/पाटेली

14

अवन्ति

उतर की उज्जयिनी व दक्षिण की महिष्मति

15

गांधार

तक्षशिला

16

कम्बोज

राजपुर / हाटक

Ø  16 महाजनपदो में दो प्रकार के राज्य थे 1. राजतन्त्र  2. गणतंत्र

राजस्थान के प्रमुख जनपद

1. जांगल:-

Ø  वर्तमान बीकानेर और जोधपुर के जिले का आस पास का स्थान को महाभारत काल में इसे जांगलदेश कहलाते थे

Ø  इसके अन्य नाम कुरु जांगला और माद्रेय जांगला भी मिलता है

Ø  इसकी राजधानी अहिछत्रपुर थी जिसे हम वर्तमान में नागौर कहते है

Ø  बीकानेर के राजा इसी जांगल देश के स्वामी होने केकारण स्वयं को “ जांगलधर बादशाह “ कहते थे।

Ø  बीकानेर राज्य के राजचिन्ह पर में भी “ जय जांगलधर बादशाह लिखा मिलता है।

 

2. मत्स्य :-

Ø  वर्तमान जयपुर के आस पास का क्षेत्र मत्स्य जनपद के नाम से जाना जाता था।

Ø  इसकी राजधानी विराटनगर थी जिसे वर्तमान में बैराठ के नाम से जाना जाता है।

3. शूरसेन :-

Ø  आधुनिक ब्रज क्षेत्र में यह महाजनपद स्थित था।

Ø  इसकी राजधानी मथुरा थी।

Ø  प्राचीन यूनानी लेखक इस राज्य को शुरसेनोई तथा राजधानी को मेथोरा कहते थे।

Ø  भरतपुर धौलपुर, तथा करौली जिलों के अधिकांश भाग शूरसेन जनपद के अंतर्गत आते है।

Ø  वासुदेव के पुत्र श्री कृष्ण का सम्बन्ध इसी जनपद से था।

 

4. शिवि :-

Ø  शिवि जनपद कि राजधानी शिवपुर थी।

Ø  इस जनपद के राजा सुशिन ने दस राजाओं को  युद्ध में पराजित किया था

Ø  वर्तमान में पाकिस्तान के शोरकोट नामक स्थान से जाना जाता है।

 

मौर्य वंश

मौर्य वंश की स्थापना

Ø  ईसा पूर्व 326 ई. के लगभग मगध के राजसिंहासन पर नन्द वंश का विलासी राजा घनानंद था ।

चन्द्रगुप्त मौर्य:- 322 – 298 ई.पू.

Ø  चन्द्रगुप्त मौर्य ने नन्द वशं के राजा घनानंद को पराजित कर मौर्य साम्राज्य की नींव रखी व मगध का शासक बना ।

Ø  चन्द्रगुप्त मौर्य ने 305 ई.पू. को यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित किया। सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त से संधि करके अपने चार  क्षेत्र पूर्वी  अफगानिस्तान , बलूचिस्तान, और सिन्धु नदी के पश्चिमी क्षेत्र उसे दे दिया।

Ø  इस संधि के अंतर्गत सेल्यूकस अपनी पुत्री  “हेलेना“ का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ किया था। यह प्रथम अंतराष्ट्रीय विवाह था।

Ø  सेल्यूकस ने अपना राजदूत मेगस्थनीज को चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा था। मेगस्थनीज की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम “इंडिका” था इस पुस्तक में चन्द्रगुप्त के नगर प्रशासन का उल्लेख मिलता था।

Ø  तमिल ग्रन्थ अह्नानुरु और मुरनानुरु में चन्द्रगुप्त के विशाल साम्राज्य की जानकारी मिलती है। इन ग्रंथो से पता चलता है की चन्द्रगुप्त का साम्राज्य दक्षिण भारत तक फैला था ।

Ø  चन्द्रगुप्त ने वृद्धावस्था में भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ले ली । 298 ई.पू. में श्रवणबेलगोला (मैसूर) में उपवास करके अपना शरीर त्याग दिया था।

 

बिन्दुसार :- 298 – 272 ई.पू.

Ø  बिन्दुसार चन्द्रगुप्त मौर्य का पुत्र व उतराधिकारी था ।

Ø  यूनान के लेखको ने बिन्दुसार को “अभित्रेकोट्स”( शत्रुओ का नाशक) कहा था ।

Ø  वायुपुराण में इसे भाद्र्सार व जैन ग्रंथो में इसे सिंहसेन कहा गया है।

Ø  दिव्यावदान के असुसर इसके शासक काल में तक्षशिला में दो विद्रोह हुए जिसका दमन करने के लिए पहले अशोक को फिर बाद में सुसीम को भेजा गया ।

Ø  बिन्दुसार के दरबार में यूनानी शासक एंटीयोकस प्रथम ने डायमेकस नामक व्यक्ति को राजदूत के रूप में नियुक्त किया ।

 

 

अशोक :- 273 – 232 ई.पू.

Ø  मौर्य वंश का सबसे महान सम्राट अशोक था । जैन अनुश्रति के अनुसार अशोक बिन्दुसार की इच्छा के विरुद्ध मगध का शासक बना था ।

Ø  अशोक का वास्तविक राज्यभिषेक 269 ई.पू. में हुआ था।

Ø  अशोक के नाम

Ø  पुराणों में अशोक को  अशोकवर्धन कहा है।

Ø  बौद्ध ग्रंथो में अशोक को चण्ड अशोक कहा है।

Ø  अभिलेखों में अशोक के नाम देवानांपिय तथा देवानांपियदस्सी कहा है।

Ø  अशोक की प्रथम पत्नी विदिशा की राजकुमारी थी । जिसके दो पुत्र महेंद्र व संघमित्रा थे जिसको  अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्री लंका भेजा था।

Ø  अशोक के अभिलेखों में उसकी रानी करुवाकी का भी उल्लेख मिलता है ।

Ø  राज्याभिषेक के 8 वें वर्ष (261 ई.पू.) में अशोक ने कलिंग (उड़ीसा) पर आक्रमण किया जिससे 1 लाख लोग मारे गये। हाथिगुफा लेख के अनुसार उस समय कलिंग का राजा नंदराज था । इस युद्ध के जो व्यापक नरसंहार हुआ जिसे देखकर अशोक विचलित जो गया और उसने अपने शस्त्रों को त्याग दिया ।

Ø  अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया और भेरिघोष के स्थान पर धम्मघोष अपना लिया ।श्रमणनिग्रोध व उपगुप्त ने अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी।

Ø  बौद्ध धर्म को अपनाने से पहले अशोक शिव का उपासक था इसकी जानकारी कल्हण की राजतंरगिणी  से मिलती है।

Ø  अशोक ने दो नगर बसाये  1. श्रीनगर (भारत)   2. देवपाटन (नेपाल) इसकी भी  जानकारी कल्हण की राजतंरगिणी  से मिलती है।

Ø  अशोक ने अपनी नई राजधानी धौली या तोसाली बनायीं गई।

Ø  अशोक ने आजीवक सम्प्रदाय के लोगों को  चार गुफाएं दान में दी जो की बराबर की पहाड़ियों पर स्थित थी जिसके नाम है सुदामा , चापार , विश्वझोपड़ी , कर्ण

Ø  रुममनदेई अभिलेख के अनुसार अशोक ने कपिलवस्तु की धम्म यात्रा की और वहाँ पर भूमिकर 1/6 से घटाकर 1/8 कर दिया ।

Ø  धम्म: - अशोक ने मनुष्य की नैतिक उन्नति हेतु जिन आदर्शो का प्रतिपादन किया उन्हें धम्म कहा जाता है।

Ø  धम्म के अनुसार पापकर्म से निवृति के लिए विश्व कल्याण , दया , दान , सत्य एवं कर्मशुद्धि ही धम्म है ।इसके अलावा साधू स्वभाव होना , कल्याकारी कार्य करना, पशु पक्षियों पर दया भाव उनका वध नहीं करना , प्राणियों का वध नहीं करना , गुरु के प्रति आदर करना आदि धम्म की आवश्यक शर्ते है।

Ø  अशोक ने बौद्ध धर्म के त्रिरत्नो बुद्ध , धम्म , संघ के प्रतिअपनी आस्था प्रकट की है।

Ø  धम्म यात्रा :- अशोक से पूर्व विहार यात्राएँ की जाती थी जिनमें राजा पशुओं का शिकार करते थे अशोक ने इनके स्थान पर धम्म यात्रा का प्रावधान किया जिससे बौद्ध स्थानों की यात्रा तथा बाह्मणों, श्रमणों, वृद्ध जो दान किया जाता था ।

Ø  अनुसंधान :- अशोक के काल में राज्य के कर्मचारियों – प्रदेशिकों राज्जुकों और युक्तकों को प्रति पांचवे वर्ष धर्म प्रचार हेतु यात्रा पर भेजा जाता था जिसे लेखो में अनुसंधान  कहते है।

Ø  धम्ममहामात्र : - राज्याभिषेक के 14 वें वर्ष में अशोक ने धम्ममहामात्रों की नियुक्ति की जिनके मुख्य कार्य थे – जनता में धम्म का प्रचार करना , उन्हें कल्याणकारी कार्य करने तथा दानशीलता के लिए प्रोत्साहित करना, कारावास में कैदियों को मुक्त करना या उनकी सजा को कम करना उनके परिवार को आर्थिक सहायता प्रदान करना आदि।

Ø  आभिलेख : - अशोक प्रथम शासक था जिसने अभिलेखों के माध्यम से अपनी प्रजा को संबोधित किया। अभिलेखों की प्रेरणा ईरानी राजा दारा( डेरियस प्रथम) से मिली थी अशोक के अधिंकाश अभिलेख ब्राही लिपि में है, जबकि पश्चिमी भारत से प्राप्त अभिलेख खरोष्ठी लिपि में लिखे हुए है।

Ø  अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में सर्वप्रथम सफलता जेम्स प्रिसेप को प्राप्त हुई।

Ø  232 ई.पू. अशोक की मृत्यु हो गई ।



अध्याय 3 अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार एवं संघर्ष

महत्वपूर्ण टिप्पणीयां

1. सन्यासी विद्रोह :-

Ø  बंगाल पर अंग्रेजी राज्य स्थापित होने के बाद जब 1769 -70 ई. भीषण अकाल पड़ा कंपनी ने आदेश से कर (TAX) भी कठोरता के वसूल करने लगे

Ø  सन्यासी कृषि के साथ साथ धार्मिक यात्राएँ भी नियमित करते थे

Ø  अंग्रेजो ने तीर्थ स्थानों पर प्रतिबन्ध लगा दिया जिसे सन्यासी लोग नाराज हो गये

Ø  इन सन्यासियों ने अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ने के लिए जनता के साथ मिलकर कंपनी की कोठियों तथा कोषों पर आक्रमण कर लुट लिए

Ø  ये लोग कंपनी के सैनिको के साथ लम्बे समय तक वीरतापूर्ण से लड़ाई की परन्तु वारेन हेस्टिंग ने एक लम्बे अभियान के तहत इस विद्रोह को दबा दिया जिसका उल्लेख बंकिम चंद्र चटर्जी ने अपने उपन्यास आनंद मठ में मिलता है

 

2. कोल विद्रोह :-

Ø  अंग्रेजी प्रशासनिक जटिलताओ कठोर भूमिकर व्यवस्था तथा स्थानीय शासक वर्गों के उपेक्षापूर्ण व्यवहार ने जिस शोषण को जन्म दिया था उसके खिलाफ कोल जनजाति ने विद्रोह किया

Ø  यह विद्रोह विद्रोह तब अधिक बढ़ गया जब 1831 ई. में उनकी भूमि उनके मुखिया मुण्डो से छीनकर बाहरी लोगों को दे दिया

Ø  यह विद्रोह रांची , सिंहभूम, हजारीबाग, पलामाऊ,तथा मानभूमि के पश्चिमी क्षेत्रों में फैला गया

Ø  एक दीर्घकालीन सैन्य अभियान के पश्चात् यह विद्रोह शांत किया गया

 

3. भील विद्रोह :-

Ø  भील जनजाति पश्चिमी तट के खानदेश नामक इलाके में रहती थी

Ø  1812 – 19  ई. तक इन लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया कारण यह था की कृषि संमंधी कष्ट तथा सरकार की नई नीतियों से भय था

Ø  अंग्रेजी सेना की अनेक टुकड़ियां इसको दबाने में लगी थी उन्होंने 1825 ई. में सेवरम के नेतृत्व में पुन: विद्रोह किया तथा 1831 ई. तथा 1846 ई. में पुन: विद्रोह किया था

4. रमोसी विद्रोह : -

Ø  पश्चिमी घाट में रहने वाली एक जनजाति रमोसी थी वे अंग्रेजों प्रशासन पद्धति तथा अंग्रेजी प्रशासन से अप्रसन्न थे

Ø  1822 ई. में उनके सरदार चित्तर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया तथा सतारा के आस – पास के प्रदेश लुट लिए

Ø  1825 – 26 ई. में पुन: विद्रोह हुआ परन्तु अधिक सैन्य बल के कारण यह विद्रोह समाप्त हो गया

 

राजनैतिक आन्दोलन

1. रोलेट एक्ट :-

Ø  भारत सरकार ने 1917 में सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता में एक कमेटी नियुक्त की जिसकी सिफारिश पर 19 मार्च 1919 को रोलेट एक्ट पारित किया गया

Ø  इस एक्ट के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर 2 वर्ष के बंदी बनाया जा  सकता था किन्तु इसके विरुद्ध “ न कोई अपील, न कोई दलील और न कोई वकील किया जा सकता था

Ø  इस एक्ट को काला कानून कहकर निंदा की गई

Ø  इस एक्ट के विरोध में 6 अप्रैल 1919 को देश भर हड़तालो का आयोजन होने लगा

 

2. खिलाफत आन्दोलन :-

Ø  खिलाफत आन्दोलन भारतीय मुसलमानों द्वारा तुर्की के खलीफा के सम्मान में चलाया था

Ø  19 अक्टूबर 1919 को पुरे देश में खिलाफत दिवस मनाया गया गाँधीजी भी इस आन्दोलन में शामिल हुए और केसर ए हिन्द की उपाधि को लौटा दिया

Ø  इस आन्दोलन की समाप्ति 10 अगस्त 1920 को सेब्र (सेवर्स) की संधि से हुई जिसमे तुर्की का विभाजन कर उसे धर्म निरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर खलीफा के पद को समाप्त कर दिया

 

3. असहयोग आन्दोलन : -

Ø  1 अगस्त 1920 को गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ करने की घोषणा कर दी

Ø  इसके अंतगर्त सरकारी उपाधियों को छोड़ने , विधानसभाओ , न्यायालयों , सरकारी शैक्षणिक संस्थाओ इत्यादि का  त्याग करना तथा कर (TEX) नहीं देना

Ø  1921 ई. में इस आन्दोलन में 30000 व्यक्ति जेल गये भारतीय इतिहास में यह पहला अवसर था जब स्वराज के लिए इतनी अधिक जनता ने भाग लिया

Ø  जब यह आन्दोलन शिखर पर था तब 5 फरवरी 1922 ई. को उतरप्रदेश के गोरखपुर जिले में चौरा- चोरा नामक स्थान पर शांतिपूर्ण जुलुस पर पुलिस द्वारा अत्याचार करने पर भीड़ ने पुलिस चौकी को आग लगा दी जिसमे 21 सिपाही एक थानेदार की मौत हो गई थी

Ø  इस घटना के कारण 12 फरवरी 1922 को  गाँधीजी ने इस आन्दोलन को वापस ले लिया

 

4. सविनय अवज्ञा आन्दोलन :-

Ø  30 सितम्बर 1929 ई. को कांग्रेस अधिवेशन में पण्डित जवाहर लाल नेहरु की अध्यक्षता ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास किया ।

Ø  12 मार्च 1930 को गाँधीजी ने अपने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी की ओर कुच किया ।

Ø  गाँधीजी 5 अप्रैल 1930 को दांडी पहुँचे और 6 अप्रैल 1930 को समुद्रके पानी से नमक बनाकर सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की।

Ø  इस आन्दोलन में गैर क़ानूनी नमक बनाने, महिलाओं द्वारा शराब की दुकानों , विदेशी वस्त्रो को जलाना, विद्यार्थीयो द्वारा सरकारी  स्कुल कॉलेज छोड़ना , सरकारी कर्मचारियों को नौकरी से त्याग पत्र देना, और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाना ।

Ø  कुछ समय बाद यह आन्दोलन पुरे भारत में फैल गया इस आन्दोलन में महिलाओं ने भी बढ़ चढ़ कर भाग लिया और विदेशी वस्तुओ का बहिष्कार करना था ।

Ø  5 मार्च 1931 को सरकार और कांग्रेस के मध्य गाँधी – इरविन समझौता हुआ । जिसमे घोषणा की गई की भारतीय संवैधानिक विकास का उद्देश्य भारत को डोमिनियन स्टेट्स देना है ।

Ø  गाँधीजी ने गोलमेज सम्मलेन में भाग लिया और वहाँ से निराशा मिली जिस कारण 1933 ई. को अपने इस आन्दोलन की असफलता को स्वीकार किया वह कांग्रेस की सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया

5. भारत छोड़ो आन्दोलन :-

Ø  14 जुलाई 1942 जो वर्धा में आयोजित कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में “ भारत छोड़ो प्रस्ताव “पारित किया गया

Ø  8 अगस्त 1942 को बम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने भारत छोड़ो प्रस्ताव को स्वीकार किया और भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ

Ø  इस आन्दोलन में गाँधीजी ने  “करो या मरो” का नारा दिया

Ø  9 अगस्त 1942 को गाँधीजी सहित अनेक नेताओ को गिरफ्तार कर लिया गया।

Ø  इस आन्दोलन में शांतिपूर्ण हड़ताल करना , सार्वजनिक सभाएँ करना , लगान देने से मना करना सरकार असहयोग करने की बात कही गई।

Ø  इस आन्दोलन में जयप्रकाश नारायण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। कही नेता भूमिगत रहकर आन्दोलन को चलाया जिसमे जयप्रकाश नारायण , राममनोहर लाल लोहिया अच्युत पटवर्धन , रामानंद मिश्रा , एस.ऍम.जोशी प्रमुख थे।

Ø  इस आन्दोलन के कारण लोगों में आजादी का मार्ग प्रशस्त कर दिया। भारतीयों में वीरता ,उत्साह, शौर्य ,और देश के लिए त्याग की भावना जागृत की।

 

 

 अध्याय 2 संघर्षकालीन भारत

1.  मारवाड़ का शासक राव चन्द्रसेन

Ø  राव चंद्रसेन का जन्म 16 जुलाई 1541ई. हुआ यह मालदेव झाला रानी स्वरूप दे का पुत्र था

Ø  स्वरूप दे ने मालदेव से कहकर अपने पुत्र राव चन्द्रसेन को युवराज बनवाया था

Ø  चंद्रसेन अपने भाईयों से छोटा होते हुए भी मारवाड़ का शासक बना

Ø  मालदेव के चार पुत्र थे

1.      राम

2.      उदयसिंह

3.      चंद्रसेन

4.      रायमल

Ø  राम सबसे बड़ा पुत्र था

Ø  चंद्रसेन सबसे छोटा पुत्र था

Ø  परम्परा के अनुसार बड़ा पुत्र राजा बनता है परन्तु राव मालदेव ने अपने छोटे पुत्र राव चंद्रसेन को राजा बना दिया इससे बड़ा पुत्र राम नाराज होकर सहायता के लिए अकबर की शरण में चला गया

Ø  अकबर ने सहायता करने के लिए हुसैन कुली खां के नेतृत्व में सेना भेजी जिसने मई 1564 में जोधपुर किले पर अधिकार कर लिया

Ø  मारवाड़ के राजा राव चंद्रसेन वहाँ भागकर भाद्राजूण में जाकर शरण ली

Ø  1570 में अकबर ने नागौर दरबार लगाया राव चंद्रसेन उस दरबार गया था परन्तु वहाँ पर अकबर के व्यवहार एवं  प्रतिस्पर्धी उदयसिंह को देखकर नागौर दरबार छोड़ के चला आ गया

Ø  अकबर ने बीकानेर के रायसिंह को जोधपुर का अधिकारी नियुक्त कर दिया और राव चंद्रसेन को पकड़ने के लिए भाद्राजूण में जलाल खां नेतृत्व 1574 में आक्रमण कर दिया वहाँ से निकल कर राव चंद्रसेन सिवाणा (बाड़मेर ) पहुँचा

Ø  11 जनवरी 1581 सारण की पहाड़ियाँ (पाली) में देहांत हो गया वही पर राव चंद्रसेन की समाधी बनी है

Ø  राव चंद्रसेन के उपनाम

·         मारवाड़ का प्रताप :- जिस प्रकार मेवाड़ में महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता(गुलामी) स्वीकार नहीं की उसी प्रकार राव चंद्रसेन ने भी अकबर की  अधीनता स्वीकार नहीं की थी इस कारण उसे मारवाड़ का प्रताप कहते है

·         प्रताप का अग्रगामी :- महाराणा प्रताप व राव चंद्रसेन का शासक काल एक ही समय था वह दोनों का एक ही लक्ष्य था की अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं करना

·         भुला- बिसरा राजा

 

2. बीकानेर का शासक रायसिंह

Ø  पिता का नाम – कल्याणमल राठौर

Ø  रायसिंह का जन्म 20 जुलाई 1541 ई. में हुआ था

Ø  1570 में अकबर ने नागौर दरबार लगाया जिसमे रायसिंह अकबर की शाही सेना मे शामिल हो गया और अकबर का विश्वासपात्र बन गया

Ø  अकबर ने रायसिंह को 1572 ई. में जोधपुर का अधिकारी नियुक्त किया

Ø  25 सितम्बर 1574 ई. को कल्याणमल की मृत्यु होने के बाद रायसिंह बीकानेर का शासक बना

Ø  सिरोही के देवड़ा सुरताण व बीजा देवड़ा के मध्य अनबन हो गई तब रायसिंह ने सिरोही पर आक्रमण कर दिया और बीजा को राज्य से बाहर निकाल दिया और आधा सिरोही मुगलों के अधीन कर महाराणा प्रताप के सौतले भाई जगमाल को दे दिया

Ø  सुरताण ने मुगलों पर आक्रमण कर दिया वह 1583 ई. को “ दताणी नामक स्थान पर युद्ध हुआ जिसमे जगमाल की मृत्यु हो गई सुरताण ने वापस सिरोही पर अधिकार कर लिया

Ø  अकबर ने रायसिंह से प्रसन्न होकर 1593 ई. में उसे जूनागढ़ प्रदेश दिया और 1604 ई. में शमशाबाद तथा नूरपुर की जागीर व “ राय” की उपाधि दी

Ø  रायसिंह द्वारा बीकानेर में कार्य

·         1589 – 94 ई. के मध्य अपने प्रधानमंत्री करमचंद की देखरेख में जूनागढ़( बीकानेर) किले का निर्माण करवाया तथा वहाँ पर एक प्रशस्ति लगवाई जिसे “रायसिंह प्रशस्ति “ के नाम से जाना जाता है

·         रायसिंह साहित्यकार भी था उसने रायसिंह महोत्सव, वैद्यक वंशावली, ज्योतिश रत्नमाला , ज्योतिश ग्रंथो की भाषा पर बाल बोधनी टिका लिखी

·         कर्मचन्द्रवंशोत्किर्तनकं काव्य ग्रन्थ में रायसिंह को “राजेन्द्र” पुकारा गया है

·         रायसिंह के काल में बीकानेर में अकाल पड़ा रायसिंह ने जगह- जगह “ सदाव्रत “ खोले एवं पशुओ के लिए चारे पानी की व्यवस्था की

·         बीकानेर चित्रकला की शुरुआत रायसिंह के काल में शुरू होई

·         रायसिंह की मृत्यु दक्षिण भारत के एक स्थान बुरहानपुर में 21 जनवरी 1612 ई. में हुई

·         महाराजा रायसिंह को इतिहासकार मुंशी देवीप्रसाद ने “ राजपूताने का कर्ण “ कहा

 

3. जयपुर का शासक सवाई जयसिंह 2

Ø  जयसिंह का जन्म 3 सितम्बर 1688 ई. को हुआ।

Ø  जयसिंह द्वितीय के पिता का नाम बिशनसिंह था।

Ø  इनके बचपन का नाम विजयसिंह था व इनके छोटे भाई का नाम जयसिंह था परन्तु औरंगजेब ने इनकी योग्यता से प्रसन्न होकर इनका नाम जयसिंह व इनके भाई का विजयसिंह कर दिया।

Ø  1699 ई. में इनके पिता बिशनसिंह की मृत्यु हो गई। सवाई जयसिंह 19 सितम्बर 1699 को आमेर का शासक बना था।

Ø  फरवरी 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु हो गई । औरंगजेब के चार पुत्र थे मुअज्जम , आजम, कामबख्त, अकबर था

Ø  औरंगजेब के दो पुत्र कामबख्त, अकबर को राजा बनने की कोई इच्छा नहीं थी। अत: मुअज्जम और  आजम दोनों के बीच 1707 ई. “ जाजऊ के मैदान “(उतरप्रदेश) में युद्ध हुआ ।

Ø  सवाई जयसिंह ने इस युद्ध में भाग लेते हुए आजम का साथ दिया। मुअज्जम ने जयसिंह के भाई विजयसिंह को अपनी ओंर मिला लिया । इस यद्ध में मुअज्जम की जीत होई व उसने अपना नाम बहादुर शाह प्रथम रखा ।

Ø  विजयसिंह आमेर का शासक बनाया गया व आमेर का नाम “ इस्लामाबाद “ और बाद में  “मोमिनाबाद “ रखा ।

Ø  आमेर का शासक जयसिंह व मारवाड़ के शासक अजीतसिंह को बहादुरशाह ने सूबेदार नियुक्त किया।

Ø  देबारी समझौता :- अमरसिंह द्वितीय (2) व सवाई जयसिंह के बीच समझौता जिसमे अमरसिंह ने शर्त के साथ अपनी पुत्री चंद्र्कुंवारी का विवाह सवाई जयसिंह के साथ किया शर्त यह थी की चंद्र्कुंवारी का पुत्र ही आमेर का आगामी शासक बनेगा। जयसिंह ने यह शर्त मान ली। इसे देबारी समझौता कहते है।

Ø  भरतपुर रियासत में चूडामन ने विद्रोह कर दिया। रंगीला ( मुग़ल सम्राट) ने उसे दबाने के लिए 1722ई. को जयसिंह को भेजा। जयसिंह ने चुडामन के भतीजे बदनसिंह  को अपनी तरह मिला कर चूड़ामन को भरतपुर से खदेड़ दिया ।

Ø  जयसिंह ने बदनसिंह को “ ब्रजराज “ की उपाधि दी।

Ø  सवाई जयसिंह ने 1727 ई. को जयनगर ( जयपुर ) की स्थापना की इसके वास्तुविद पं. विद्याधर भट्टाचार्य एवं पं. जगन्नाथ सम्राट थे।

Ø  सवाई जयसिंह ने नक्षत्रों की शुद्ध सरणी ‘ जीज मुहम्मद शाह ने बनाई तथा “जयसिंह कारिका’ ज्योतिष ग्रन्थ की रचना की।

Ø  सवाई जयसिंह ने जयपुर , दिल्ली , उज्जैन, बनारस व मथुरा में पांच वेधशालाओ ( जंतर-मंतर) का निर्माण करवाया था।

Ø  जयपुर में स्थित जंतर मंतर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा 2010 में दिया गया है।

Ø  जयसिंह ने आमेर की जगह जयपुर को कछवाहा वंश की राजधानी बनाया ।

Ø  सवाई जयसिंह अंतिम शासक था जिसने कई यज्ञ करवाये।

Ø  यज्ञ करने वाले बाह्मणों के रहने के लिए जयपुर में जलमहलों का निर्माण करवाया ।

Ø  सवाई जयसिंह की मृत्यु 21 सितम्बर 1743 ई. रक्त विकार से हो गई थी।


अध्याय 3 अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार एवं संघर्ष

1857 की क्रांति

Ø  अंग्रेजी सरकार के 100 वर्षो के शासन के विरुद्ध प्रथम विद्रोह जो सैन्य क्रांति के रूप में शुरू हुआ

Ø  गर्वनर जनरल  = लार्ड कैनिंग

Ø  1857 की क्रांति का विद्रोह 10 मई 1857 को मेरठ छावनी में आरम्भ हुआ इसकी पहली घटना 8 सैनिकों का दिल्ली के लाल किले पर पहुँचाना थी

·        क्रांति का प्रतिक चिन्ह  = कमल और रोटी

·        क्रांति की देवी  = सुगाली माता

·        क्रांति का नारा = मारो फिरंगी

·        विद्रोह की आरम्भ की तिथि जो तय की गई थी वह 31 मई 1857 थी

Ø  प्रथम महत्वपूर्ण घटना :- 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में 34 वीं नेशनल कमान रेजीमेंट की 6 वीं कमान के एक सैनिक मंगल पांडे ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से मना कर दिया और दो अंग्रेज अधिकारी को गोली से मौत के घाट उतार दिया

·        8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी गई

Ø  12 मई 1857 को क्रांतिकारियों ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया और बहादुरशाह द्वितीय (2) को भारत का सम्राट घोषित कर दिया

Ø  1857 की क्रांति के कारण

·        राजनितिक कारण

1.  लार्ड डलहौजी की साम्राज्यवादी नीति।

2.  मुग़ल बादशाह के प्रति अंग्रेजों का दुवर्यवहार।

3.  नाना साहेब और झाँसी के साथ किया गया गलत व्यवहार।

4.  अवध को अंग्रेजी राज्य में मिलाया जाना ।

·       

[ Click Here To Download ] आर्थिक कारण

1.  भारत के संसाधनों का अत्यधिक शोषण

2.  भाड़ा रहित भूमि का पुनग्रहण

3.  शिक्षित भारतीयों के लिए उच्च सेना में प्रवेश निषेध

·        सामाजिक कारण

1.  भारतीयों के साथ बुरा व्यवहार

2.  गलत ढंग से ईसाई धर्म का प्रचार

3.  रेलवे व डाक तार व्यवस्था

·        सैनिक कारण

1.  यूरोपीय एवं भारतीय सैनिको के बीच भेदभाव नीति के कारण

2.  सैनिक अधिकारीयों का असैनिक सेवा में स्थानान्तरण करना

·        तात्कालिक कारण

1.  अंग्रेजों का धर्म में हस्तक्षेप

2.  एन्फिल्ड राइफल के लिए सूअर एवं गाय की चर्बी लगी कारतूस का प्रयोग

विद्रोह के केंद्र

विद्रोह का नेतृत्व

विद्रोह का दमन करने वाले अंग्रेज अधिकारी

दिल्ली

बहादुरशाह जफ़र 2 , बख्त खां

निकलसन, हड्सन

झाँसी

रानी लक्ष्मीबाई

जनरल हुारोज

ग्वालियर

तात्याँ टोपे

जनरल हुारोज

लखनऊ

बेगम हजरत महल

कॅालिन कैम्पबेल

कानपूर

नाना साहब

कॅालिन कैम्पबेल

बिहार ( जगदीशपुर )

कुंवर सिंह

बेनविल हेमिल्टन

 

Ø  1857 की क्रांति असफलता के कारण

1.  विद्रोह असंगठित एवं सुनियोजित नहीं था।

2.  अधिकांश जमींदार अंग्रेजों के साथ थे।

3.  आधुनिक शिक्षा प्राप्त भारतीयों ने विद्रोह का समर्थन नहीं किया

4.  भारतीयों के संचार सुविधा का अभाव था

Ø  1857 की क्रांति का परिणाम

1.  ईस्ट इण्डिया कंपनी के शासन ब्रिटीश क्राउन के हाथों में आ गया।

2.  पेशवा के पद को समाप्त कर दिया और मुग़ल व्यवस्था के तरीको को समाप्त कर दिया

3.  सैन्य बजट बढ़ा और अंग्रेज सैनिकों को आधुनिकतम हथियारों से लैस (सुविधा)  किया गया ।

4.  गर्वनर जनरल का नाम वायसराय हो गया

Ø  डॅा. विनायक दामोदर सावरकर ने अपनी पुस्तक ( भारत का स्वंत्रता समर ) वार ऑफ़ इन्डियन इंडिपेंन्डेस में इस युद्ध को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम बताया

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


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