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प्रत्यय प्रकरण
Ø कृदन्त प्रत्यय
1. शतृ प्रत्यय – वर्तमान काल अर्थ में अर्थात गच्छन् (जाते हुए) लिखन (लिखते हुए) इस अर्थ मे
परस्मैपदी धातुओ से शतृ प्रत्यय होता है। इत् संज्ञा लोप करने के
बाद “अत्” शेष रहता है। शतृ प्रत्यय से निष्पन
शब्दो के रूप पुल्लिंग मे पठत् कि तरह
स्त्रीलिंग में नदी की तरह नपुसंकलिंग में जगत् कि तरह
पठ + शतृ शब्दः
पुल्लिंग स्त्रीलिंग नापुसंकलिंग
पठ + शतृ पठत्
पठन् पठन्ती पठत्
गम् + शतृ गच्छत्
गच्छन् गच्छन्ती गच्छत्
भू + शतृ भवत् भवन्
भवन्ती
भवत्
दृश + शतृ पश्यत्
पश्यन् पश्यन्ती
पश्यत्
2. शानच् प्रत्यय = वर्तमान काल अर्थ में आत्मनेपदी धातुओ से शानच् प्रत्यय होता है इत्
संज्ञा लोप के बाद “आन” शेष रहता है शानच् प्रत्ययान्त शब्दो के रूप पुल्लिंग मे राम की तरह
स्त्रीलिंग मे रमा कि तरह तथा नपुसंकलिंग मे फ़ल् कि तरह
धातु + प्रत्यय: पुल्लिंग स्त्रीलिंग नपुसंकलिंग
सेव् + शानच्(आन) सेवमानः
सेवमाना सेवमानम्
पच् + शानच् पचमानः
पचमाना पचमानम्
लभ् + शानच्
लभमानः लभमाना लभमानम्
वृत + शानच्
वर्तमानः वर्तमाना वर्तमानम्
3.तव्यत् प्रत्यय :- तव्यत् प्रत्यय क प्रयोग हिन्दी मे “चाहिए या योग्य” इस अर्थ में होता है। इस प्रत्यय में इत् संज्ञा लोप के बाद “तव्य” शेष रहता है
यह प्रत्यय भाववाच्य और कर्मवाच्य मे होता है। तव्यत् प्रत्ययान्त शब्दो
के रूप पुल्लिंग मे राम कि तरह स्त्रीलिंग रमा तथा नपुसंकलिंग मे फ़ल् कि तरह् चलेगे।
धातु + प्रत्यय:
पुल्लिंग स्त्रीलिंग नपुसंकलिंग
पठ + तव्यत्( तव्य)
पठितव्यः पठितव्या पठितव्यम्
लिख + तव्यत्
लेखितव्य: लेखितव्या लेखितव्यम्
ग्रह + तव्यत्
ग्रहीतव्य: ग्रहीतव्या ग्रहीतव्यम्
दृश् + तव्यत्
दृष्ट्व्यः दृष्ट्व्या दृष्ट्व्यम्
श्रु + तव्यत् श्रोतव्यः श्रोतव्या श्रोतव्यम्
पच् + तव्यत्
पक्तव्यः पक्तव्या पक्तव्यम्
4. अनीयर् प्रत्यय – अनीयर् प्रत्यय भी तव्यत् प्रत्यय के
समान अर्थ वाला है। इसका प्रयोग भी हिन्दी मे चाहिए या योग्य अर्थ मे है इत् संज्ञा लोप के बाद अनीय
शेष रहता है।यह् प्रत्यय भाववाच्ये और कर्मवाच्य मे होता है अनीयर् प्रत्ययान्त शब्द राम
रमा फ़ल कि तरह चलेगे।
धातु + प्रत्यय:
पुल्लिंग
स्त्रीलिंग नपुसंकलिंग
एध् + अनीयर् (अनीय)
एधनियः एधनीया
एधनीयम्
भू + अनीयर्
भवनीय: भवनीया
भवनीयम्
गम् + अनीयर्
गमनीयः गमनीया
गमनीयम्
Ø तद्दित प्रत्यय
1. मतुप् प्रत्यय – तदस्य अस्ति (वह इसका है ) अथवा अस्मिन्
(इसमे) इस अर्थ मे शब्दों से मतुप् होता है। इसका इत् संज्ञा लोप के बाद “मत्” शेष रहेगा मत् के स्थान
पर वत् आदेश होता है। मतुप् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुल्लिंग मे भगवत् कि तरह स्त्रीलिंग मे नदी
नपुसंकलिंग मे जगत् कि तरह चलेगे
Ø प्रायः वत् का प्रयोग अकारान्तः शब्दों के लिए (अर्थात ऐसे शब्द जिसके अंत में “अ” हो केवल उसे ही वत् अदेश अन्यया मत् ही
रहेगा
धातु + प्रत्यय: पुल्लिंग स्त्रीलिंग नपुसंकलिंग
धन + मतुप्
(मत्(वत्) धनवान् धनवती धनवत्
गुण + मतुप् गुणवान् गुणवती गुणवत्
श्री + मतुप् श्रीमान् श्रीमती श्रीमत्
यशस् + मतुप् यशस्वान् यशस्वती यशस्वत्
आयुस् + मतुप्
आयुष्मान् आयुष्मती आयुष्मत्
2. इन्- ठन् प्रत्यय
Ø अकारान्त प्रातिपदिक (शब्द)
से (वह इसका है।) इस अर्थ मे इन् और ठन् प्रत्यय होता है।
Ø प्रयोग के समय “इनि”
प्रत्यय का “इन” शेष रहता है। प्रथमा विभक्ति अर्थ वाले सु प्रत्यय के स्थान पर
“ई” आदेश होता है ।
दण्ड् + इन् =
दण्डिन् + सु (ई) दण्डी
ठन् प्रत्यय का इत् संज्ञा
लोप के बाद “ठ” शेष रहता है। ठ के स्थान पर ‘ठस्येकः’ इस सूत्र के द्वारा “ठ” के स्थान
पर “इक” आदेश हो जाता है।
दण्ड + ठन् (ठ) = दण्ड+इक = दण्डिकः
शब्द प्रत्यय निष्पन्न
शब्द पुल्लिंग शब्द
धन + इन् धनिन् धनी
क्रोध् + इन् क्रोधिन् क्रोधी
दण्ड+ इन् दण्डिन् दण्डी
गुण + इन् गुणिन् गुणी
माला + इन् मलिन् माली
योग + इन् योगिन् योगी
ज्ञान + इन् ज्ञानिन् ज्ञानी
दण्ड् + ठन्(इक) दण्डिक् दण्डिकः
धन + ठन्(इक) धनिक
धनिकः
गुण + ठन्(इक) गुणिक गुणिकः
नौ + ठन्(इक) नाविक नाविकः
माया +
ठन्(इक) मायिक
मायिकः
3.त्व - तल् प्रत्यय
Ø भाव अर्थ मे शब्दो से त्व और तल् प्रत्यय होता
है। त्व प्रत्ययान्त
शब्द नपुसंकलिगं मे होते है तथा तल् प्रत्ययान्त शब्द स्त्रीलिंग मे होते है।
Ø शब्द + त्व शब्द +प्रत्यय
मनुष्य+ त्व = मनुष्यत्वम्
मनुष्य + तल् = मनुष्यता
शिशु + त्व = शिशुत्वम् शिशु +
तल् = शिशुता
गुरु + त्व = गुरुत्वम्
गुरु+ तल् = गुरुता
देव + त्व = देवत्वम्
देव + तल् = देवता
जड + त्व = जडत्वम् जड +
तल् = जडता
कवि + त्व =कवित्वम् कवि +
तल् = कविता
पटु + त्व = पटुत्वम् पटु +
तल् = पटुता
3.स्त्रीप्रत्यय
1. टाप् प्रत्यय
Ø अज आदि अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग अर्थ में
टाप् प्रत्यय होता है। इत् संज्ञा लोप
के बाद “आ” शेष रहता है।
Ø कही – कही पर अकार के स्थान पर इकार होता है।
शब्द + प्रत्यय शब्द प्रत्यय
अज + टाप् (आ) अजा मूषक + टाप् = मूषिका
अश्व + टाप् = अश्वा बालक + टाप् = बालिका
ज्येष्ठ + टाप् = ज्येष्ठा मामक + टाप् = मामिका
शुद्र
+ टाप् = शुद्रा कारक
+ टाप् =
कारिका
चटक
+ टाप् = चटका साधक
+ टाप् = साधिका
कनिष्ठ + टाप् = कनिष्ठा
2. ङीप् प्रत्यय
Ø ऋकार अंत
वाली तथा नकार अंत वाले शब्द स्त्रीलिंग में ङीप् प्रत्यय होता है। इत् संज्ञा लोप के बाद ई शेष रहता है।
कर्तृ + ङीप् =
कर्त्री दण्डिन् + ङीप् = दण्डिनी
कामिन् + ङीप् =
कामिनी राजन् + ङीप् = राज्ञी
2. “उगिश्च “ – जिन
प्रत्ययों में उ ऋ लृ इन् वर्णो कि इत् संज्ञा के बाद लोप हो जाता है वे उगित
प्रत्यय कहलाते है। जैसे मतुप् में उ कि इत् संज्ञा होती है अतः मतुप् उगित प्रत्यय कहलाता है
मतुप् प्रत्ययान्त शब्दों के साथ स्त्रीलिंग में ङीप् प्रत्यय होता है ।
भवत् ङीप् = भवती
रूपवत् + ङीप् = रूपवती
श्रीमत्+ ङीप् =
श्रीमती यजन्त + ङीप् = यजन्ती
बुद्दिमत् + ङीप् = बुद्दिमती
पचन्त + ङीप् = पचंती
Ø टीढदाण आदि शब्दों से भी स्त्रीलिंग में ङीप् प्रत्यय होता है।
कुरुचर् + ङीप् = कुरुचरी उरुमात्र + ङीप् = उरुमात्री
नद + ङीप् =
नदी आक्षिक + ङीप् = आक्षिकी
वैनटेय + ङीप् =
विन्तेयी कुम्भकार + ङीप् =
कुम्भकारी
पार्वत+ ङीप् =
पार्वती औत्स + ङीप् = औत्सी
Ø उम्र वाची शब्दों के साथ
स्त्रीलिंग मे ङीप् प्रत्यय होता है।
कुमार + ङीप् =
कुमारी किशोर + ङीप् = किशोरी
वधूत + ङीप् =
वधूति त्रिलोक + ङीप् = त्रिलोकी
पञ्चमूल + ङीप् = पञ्चमुली
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